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One plant of the world's sweetest fruit earns 12000 rupees at a time, the cost is also very lessBy philanthropist Vnita Kasniya PunjabThis plant starts giving yield after two years. aging of the plant

तेलंगाना के किसान ने उगाए बिना पकाए खाने वाले चावल- Magic riceBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबTelangana farmers is growing Magic riceकुछ सालों में खेती लोगों का जनुन बन चुका है। हमारे देश में ऐसे बहुत से व्यक्ति हैं, जो लाखों की नौकरी छोड़ खेती का मार्ग चुन रहे हैं। आज हम एक ऐसे किसान की बात करेंगे, जिसने अपनी अकलमंदी और अपनी मेहनत से ख़ास किस्म के ‘मैजिक राइस’ (Magic rice) की खोज की है। इसके बारे में जानकार आप भी हैरान हो जाएंगे।मैजिक राइस (Magic rice)Sponsored LinksYou May Also LikeIndian Students: Study in CanadaCanada Scholarshipsby Taboolaकिसान श्रीकांत गरमपल्ली (Srikanth Garampally) करीमनगर के श्रीराममल्लापल्ली गाँव के रहने वाले हैं। उन्होंने एक अलग ख़ास किस्म के चावल की खोज की है। इस चावल की सबसे खास बात यह है कि इसे खाने के लिए पकाने की जरूरत नहीं होती है। इस चावल को केवल 30 मिनट के लिए पानी में भिगो देने के बाद यह खाने के लिए तैयार हो जाता है। अगर आप गरम चावल खाना चाहते हैं, तो इसे गर्म पानी में भी भिगो सकते हैं।Telangana farmers is growing Magic riceअसम से मिली Magic rice की जानकारीआमतौर पर इसे सामान्य पानी में भिगोकर भी आप आसानी से इस चावल को खा सकते हैं। इस चावल को रेडी-टू-ईट भी कहा जाता है। यह चावल बनाने में किसी भी तरह की कोई मेहनत नहीं लगती। श्रीकांत बताते हैं कि 1 साल पहले वह असम (Assam) गए थे। इस दौरान श्रीकांत को ऐसे चावल की जानकारी मिली, जिसे बिना पकाए खाया जा सकता है। उसके बाद श्रीकांत ‘गुवाहाटी विश्वविद्यालय’ से संपर्क करके चावल की इस अनुठी प्रजाति के पूरी जानकारी ली।Telangana farmers is growing Magic riceबाल वनिता महिला आश्रमअसम में पाए जाते हैं Magic riceश्रीकांत बताते हैं कि असम के पहाड़ी इलाक़ों में कुछ जनजातियां एक अलग क़िस्म के धान की खेती करते हैं। यह धान लगभग 145 दिनों में तैयार हो जाता है, जिसे पकाने तक की ज़रूरत नहीं पड़ती। असम के पहाड़ी इलाक़ों में इस चावल को ‘बोकासौल’ कहा जाता है। यह चावल सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इस चावल में 10.73% फ़ाइबर और 6.8% प्रोटीन पाए जाते हैं। इस चावल को असम के पहाड़ी लोग गुड़, केला और दही के साथ खाना ज्यादा पसंद करते हैं।Telangana farmers is growing Magic riceअसम से लाए चावल की बीजश्रीकांत बताते हैं कि जब वह असम गए थे, तब वही से इस ख़ास क़िस्म के चावल के बीज लेकर आए थे।ज्ञअहम राजवंश (Aham Raajavansh), जो 12वीं शताब्दी में असम के राजा हुआ करते थे। उन्हें ‘बोकासौल’ चावल बहुत पसंद था, लेकिन बाद में चावल की दूसरी प्रजातियों का मांग बढ़ने के चलते यह प्रजाति लगभग खतम ही हो गई थी। इसके बाद उन्होंने इस चावल को विकसित करने का फ़ैसला किया।Magic rice से हो रहा अधिक लाभश्रीकांत पिछले 30 सालों से खेती कर रहे हैं। Magic rice के साथ-साथ उनके पास और भी 120 किस्म के चावल का संग्रह हैं। उन चावलों का नाम नवारा, मप्पीलै, सांबा और कुस्का है। इसके अलावा श्रीकांत 60 अन्य प्रकार के जैविक सब्जियों की भी खेती करते हैं। श्रीकांत असम से धान के बीज लाने के बाद अपने आधा एकड़ खेत में बो दिए। केवल आधे एकड़ जमीन में उन्हें क़रीब 5 बोरी चावल का उत्पादन हुआ। धान की अन्य प्रजातियों के बराबर ही इसकी फ़सल भी 145 दिनों में तैयार हो जाती है।

सोलर सिस्टम की मदद से फूलों की खेती और लाखों-करोड़ों में कमाई, काफी चर्चित हो रहा है यह तरीका By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब फूलों के बाग की मालकिन बताती हैं कि उन्हें सोलर सिस्टम से काफी मदद मिल रही हैं और अब वे अपने फार्म के विस्तार के बारे में सोच रही हैं. उनका कहना है कि आने वाले समय में हम अपने इस्तेमाल के लिए 100 प्रतिशत ऊर्जा सौर बिजली से हासिल करना चाहते हैं.बाल वनिता महिला आश्रम authorUntitled Design 2021 02 05t121619.353सांकेतिक तस्वीरबदलते दौर में खेती के तौर-तरीकों में भी बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. आज के समय में खेती के कामों में बड़े स्तर पर टेक्नोलॉजी और मशीन का प्रभाव दिखता है. टेक्नोलॉजी और मशीन की मदद से खेती का काम आसान तो हुआ है लेकिन लागत भी बढ़ गई है. बावजूद इसके यह नए समय की खेती के लिए जरूरत है.नए तौर-तरीकों का इस्तेमाल कर केन्या के किसान आज फूलों की खेती कर रहे हैं और काफी अधिक लाभ कमा रहे हैं. दरअसल, बड़े पैमाने पर फूलों की खेती करने वाली कंपनियों के पास कोल्ड स्टोरेज हैं. वे फूलों को लंबे वक्त तक सुरक्षित रखने के लिए इनका इस्तेमाल करती हैं, लेकिन इसके लिए निर्बाध बिजली सप्लाई की जरूरत होती है. केन्या में बिजली की सप्लाई पर हमेशा भरोसा नहीं किया जा सकता. यहां अक्सर बिजली चली जाती है. ऐसे में कोल्ड स्टोरेज का इस्तेमाल करने वालों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. इसी में से एक ग्रेस न्याचाए भी हैं. वे काफी समय से इस समस्या का समाधान खोज रही थीं.कोल्ड स्टोरेज में लगती है काफी बिजलीडीडब्ल्यू हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रेस न्याचाए फूलों के एक फार्म की मालकिन हैं. सिंबी रोजेज नाम का उनका फूलों का बड़ा बाग केन्या की राजधानी नैरोबी के पास ठीका शहर में स्थित है. फेयर ट्रेड के सर्टिफाइट उनके फार्म में 500 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. करीब 30 हेक्टेयर जमीन में बने ग्रीन हाउस गुलाब से भरे पड़े हैं. इन सारे फूलों को बिना किसी रसायन की मदद से उगाया जाता है. एक बार जब फसल तैयार हो जाए तो गुलाबों को पैक कर कोल्ड स्टोरेज में रख दिया जाता है. कोल्ड स्टोरेज और आर्टिफिशियल लाइट में काफी बिजली खर्च होती है.ग्रेस न्याचाए को कुछ हद तक इस मामले में सफलता मिल चुकी है. पिछले साल उन्हें एक सोलर सिस्टम मिला, जिससे 150 किलो वाट बिजली पैदा की जा सकती है. इसके लिए जर्मन स्टार्टअप इकोलिगो ने फंड की व्यवस्था की थी. ग्रेस न्याचाए कहती हैं, उन्होंने आकर हमें सोलर एनर्जी के फायदों के बारे में जानकारी दी. इसके साथ ही उन्होंने यह भी दिखाया कि थोड़ी सी कोशिश से हम यह शुरू कर सकते हैं और आधी ऊर्जा सोलर एनर्जी से हासिल कर सकते हैं.‘सोलर सिस्टम से मिली है काफी मदद’अब ग्रेस हर महीने 2400 यूरो उस स्टार्टअप को देती हैं. यह पैसा बहुत ज्यादा है लेकिन जितना वो पहले बिजली के लिए देती थीं, उससे 30 प्रतिशत कम है. 9 सालों में सारा पैसा चुकाने के बाद सोलर सिस्टम उनका हो जाएगा और उन्हें सिर्फ रखरखाव का खर्च ही उठाना पड़ेगा.सिंबी रोजेज की मालकिन ग्रेस न्याचाए कहती हैं कि उन्हें सोलर सिस्टम से काफी मदद मिल रही हैं और अब वे अपने फार्म के विस्तार के बारे में सोच रही हैं. उनका कहना है कि आने वाले समय में हम अपने इस्तेमाल के लिए 100 प्रतिशत ऊर्जा सौर बिजली से हासिल करना चाहते हैं.सोलर सिस्टम की वजह से उन्हें काफी लाभ मिल रहा है. लागत में कमी आई है. इसके साथ ही उन्हें अब यह नहीं सोचना पड़ता कि बिजली चली गई तो कोल्ड स्टोरेज में फूल सुरक्षित कैसे रहेंगे?इकोलिगो ने सिर्फ सिंबी रोजेज की मदद ही नहीं की है. केन्या में फूल का व्यापार करने वाली अन्य कंपनियों ने भी इकोलिगो की मदद से अपने लिए सोलर सिस्टम लगवाया है. जर्मन कंपनी इकोलिगो पारंपरिक ऊर्जा स्रोत पर निर्भरता कम करने की दिशा में काम करती है और फंड के व्यवस्था कराने का तरीका भी इस कंपनी का शानदार है.कंपनी बैंक से फंड की व्यवस्था नहीं कराती बल्कि निजी निवेशकों, दोस्तों, परिवार वालों या अन्य इसी तरह के लोगों से धन लेकर सोलर सिस्टम लगाने में कंपनियों की मदद करती है. इस तरीके से धन जुटाने के पीछे कंपनी का मकसद है कि काम तेजी से हो जाए और लोगों को ज्यादा परेशानी न हो.

🌹🍀🍁🌷खाटू श्याम बाबा की कहानी 🌹🍀🍁🌷By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब📢राजस्थान के सीकर जिले में श्री खाटू श्याम जी का सुप्रसिद्ध मंदिर है. वैसे तो खाटू श्याम बाबा के भक्तों की कोई गिनती नहीं लेकिन इनमें खासकर वैश्य, मारवाड़ी जैसे व्यवसायी वर्ग अधिक संख्या में है. श्याम बाबा कौन थे, उनके जन्म और जीवन चरित्र के बारे में जानते हैं इस लेख में.खाटू श्याम जी का असली नाम बर्बरीक है. महाभारत की एक कहानी के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान प्रदेश के खाटू नगर में दफना दिया था. इसीलिए बर्बरीक जी का नाम खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुआ. वर्तमान में खाटूनगर सीकर जिले के नाम से जाना जाता है. खाटू श्याम बाबा जी कलियुग में श्री कृष्ण भगवान के अवतार के रूप में माने जाते हैं.श्याम बाबा घटोत्कच और नागकन्या नाग कन्या मौरवी के पुत्र हैं. पांचों पांडवों में सर्वाधिक बलशाली भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा बर्बरीक के दादा दादी थे. कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक के बाल बब्बर शेर के समान थे, अतः उनका नाम बर्बरीक रखा गया. बर्बरीक का नाम श्याम बाबा (Shyam Baba) कैसे पड़ा, आइये इसकी कहानी जानते हैं.बर्बरीक बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे. बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण और अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त कर ली थी. बर्बरीक ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी, जिसके आशीर्वादस्वरुप भगवान ने शिव ने बर्बरीक को 3 चमत्कारी बाण प्रदान किए. इसी कारणवश बर्बरीक का नाम तीन बाणधारी के रूप में भी प्रसिद्ध है. भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में समर्थ थे.जब कौरवों-पांडवों का युद्ध होने का सूचना बर्बरीक को मिली तो उन्होंने भी युद्ध में भाग लेने का निर्णय लिया. बर्बरीक अपनी माँ का आशीर्वाद लिए और उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन देकर निकल पड़े. इसी वचन के कारण हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा यह बात प्रसिद्ध हुई.जब बर्बरीक जा रहे थे तो उन्हें मार्ग में एक ब्राह्मण मिला. यह ब्राह्मण कोई और नहीं, भगवान श्री कृष्ण थे जोकि बर्बरीक की परीक्षा लेना चाहते थे. ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न किया कि वो मात्र 3 बाण लेकर लड़ने को जा रहा है ? मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है. बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु सेना को समाप्त करने में सक्षम है और इसके बाद भी वह तीर नष्ट न होकर वापस उनके तरकश में आ जायेगा. अतः अगर तीनों तीर के उपयोग से तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है.ब्राह्मण ने बर्बरीक (Barbarik) से एक पीपल के वृक्ष की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए. बर्बरीक ने भगवान का ध्यान कर एक बाण छोड़ दिया. उस बाण ने पीपल के सारे पत्तों को छेद दिया और उसके बाद बाण ब्राह्मण बने कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा. असल में कृष्ण ने एक पत्ता अपने पैर के नीचे छिपा दिया था. बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है. बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लो, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा.श्री कृष्ण बर्बरीक के पराक्रम से प्रसन्न हुए. उन्होंने पूंछा कि बर्बरीक किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे. बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष निर्धारित किया है, वो तो बस अपने वचन अनुसार हारे हुए पक्ष की ओर से लड़ेंगे. श्री कृष्ण ये सुनकर विचारमग्न हो गये क्योकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव जानते थे. कौरवों ने योजना बनाई थी कि युद्ध के पहले दिन वो कम सेना के साथ युद्ध करेंगे. इससे कौरव युद्ध में हराने लगेंगे, जिसके कारण बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ने आ जायेंगे. अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों का नाश कर देंगे.कौरवों की योजना विफल करने के लिए ब्राह्मण बने कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा. बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया. अब ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए. इस अनोखे दान की मांग सुनकर बर्बरीक आश्चर्यचकित हुए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है. बर्बरीक ने प्रार्थना कि वो दिए गये वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मणदेव अपने वास्तविक रूप में प्रकट हों.भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए. बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए बचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी युद्ध अपनी आँखों से देखने की इच्छा है. श्री कृष्ण बर्बरीक ने बर्बरीक की वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा पूरी करने का आशीर्वाद दिया. बर्बरीक ने अपना शीश काटकर कृष्ण को दे दिया. श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ी पर स्थित कर दिया, जहाँ से बर्बरीक युद्ध का दृश्य देख सकें. इसके पश्चात कृष्ण ने बर्बरीक के धड़ का शास्त्रोक्त विधि से अंतिम संस्कार कर दिया.महाभारत का महान युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए. विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है. श्री कृष्ण ने कहा – चूंकि बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस प्रश्न का उत्तर उन्ही से जानना चाहिए. तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, क्योकि यह सब कुछ श्री कृष्ण की उत्कृष्ट युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ. विजय के पीछे सबकुछ श्री कृष्ण की ही माया थी.बर्बरीक के इस सत्य वचन से देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे. श्री कृष्ण वीर बर्बरीक की महानता से अति प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा – हे वीर बर्बरीक आप महान है. मेरे आशीर्वाद स्वरुप आज से आप मेरे नाम श्याम से प्रसिद्ध होओगे. कलियुग में आप कृष्णअवतार रूप में पूजे जायेंगे और अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण करेंगे.भगवान श्री कृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते भी हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर निरंतर अपनी कृपा बनाये रखते हैं. बाबा श्याम अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं. इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा सताया गया होता है वो भी अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का सच्चे मन से नाम ले और स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है. श्री खाटू श्याम बाबा (Shri Khatu Shyam Baba ji) की महिमा अपरम्पार है, सश्रद्धा विनती है कि बाबा श्याम इसी प्रकार अपने भक्तों पर अपनी कृपा बनाये रखें.

Bamboo Farming: किसानों को 3.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की कमाई करवा सकता है ‘हरा सोना’ वनिता कासनियां पंजाबबांस की खेती के लिए मिशन मोड में काम कर रही है सरकार, खेती करने के इच्छुक किसानों को मिलेगी आर्थिक मदद, जानिए इसके बारे में सबकुछ.Bamboo Farming: किसानों को 3.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की कमाई करवा सकता है ‘हरा सोना’बांस की खेती के बारे में जानिए सबकुछ.अब किसान बिना किसी रोकटोक बांस की खेती (Bamboo farming) कर सकते हैं. क्योंकि केंद्र सरकार ने इसे पेड़ की श्रेणी से हटा दिया है. इसकी खेती बढ़ाने के लिए नौ राज्यों में 22 बांस क्लस्टरों की शुरुआत की गई है. इस समय 13.96 मिलियन हेक्टेयर में इसकी खेती हो रही है. बांस की 136 प्रजातियां हैं. जिस काम के लिए खेती करना चाहते हैं वैसी प्रजाति चुन सकते हैं. केंद्रीय कृषि मंत्रालय (Ministry of Agriculture) का अनुमान है कि इसकी खेती से किसान हर साल 3.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की कमाई कर सकते हैं. यह किसानों के लिए ‘हरा सोना’ बनकर उभर रहा है.मोदी सरकार (Modi government) ने बांस की बड़े पैमाने पर खेती के लिए राष्ट्रीय बैंबू मिशन बनाया है. जिसके तहत किसानों को बांस की खेती करने पर प्रति पौधा 120 रुपये की सरकारी सहायता भी मिलेगी. कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्था (Economy) के विशेषज्ञ बिनोद आनंद ने कहा, “बांस पर्यावरण हितैषी भी है. क्योंकि लकड़ी का नया विकल्प बनकर उभर रहा है. इससे वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर लगाम लगेगी. यह प्लास्टिक, स्टील और सीमेंट का भी विकल्प बनकर पर्यावरण की रक्षा कर रहा है. यह किसानों का मित्र है.” इसीलिए सरकार न सिर्फ किसानों को बांस की खेती के लिए मदद दे रही है बल्कि उससे जुड़े लघु तथा कुटीर उद्योगों के लिए 50 प्रतिशत तक अनुदान भी दिया जा रहा है.किस काम के लिए कर रहे हैं बांस की खेती?-अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग बांस की किस्में हैं.-इसलिए यह देखकर प्रजाति का चयन करें कि किस काम के लिए इसकी खेती कर रहे हैं.-बांस की खेती आमतौर पर तीन से चार साल में तैयार होगी.-चौथे साल में कटाई शुरू कर सकते हैं.-इसका पौधा तीन-चार मीटर की दूरी पर लगाया जाता है.-इसके बीच की जगह पर आप कोई और खेती कर सकते हैं.Bamboo Houseबांस से बना घर (Photo-Ministry of Agriculture)सरकार से आर्थिक मदद-तीन साल में औसतन 240 रुपये प्रति प्लांट की लागत आएगी.-इसमें से 120 रुपये प्रति प्लांट सरकारी मदद मिलेगी.-पूर्वोत्तर को छोड़ कर अन्य क्षेत्रों में इसकी खेती के लिए 50 फीसदी मदद.– 50 फीसदी सरकारी शेयर में 60 फीसदी केंद्र और 40 फीसदी राज्य की हिस्सेदारी होगी.-पूर्वोत्तर में 60 फीसदी सरकार देगी और 40 फीसदी किसान लगाएगा.-60 फीसदी सरकारी मदद में 90 फीसदी केंद्र और 10 फीसदी राज्य सरकार देगी.-जिले में इसका नोडल अधिकारी आपको पूरी जानकारी दे देगा.-भारत में बांस की खेती की रोपाई जुलाई महीने में होती है.-सरकारी नर्सरी से पौध फ्री मिलेगी.बांस की खेती से कमाई-प्रजाति के हिसाब से एक हेक्टेयर में 1500 से 2500 पौधे लगा सकते हैं.-अगर आप 3 गुणा 2.5 मीटर पर पौधा लगाते हैं तो एक हेक्टेयर में करीब 1500 प्लांट लगेंगे.-कृषि मंत्रालय के मुताबिक 4 साल बाद 3 से 3.5 लाख रुपये की कमाई होने लगेगी.-खेत के मेड़ पर आप 4 गुणा 4 मीटर पर बांस लगा सकते हैं.-इससे एक हेक्टेयर में चौथे साल से करीब 30 हजार रुपये की कमाई होने लगेगी.-हर साल रिप्लांटेशन करने की जरूरत नहीं है. बांस की पौध करीब 40 साल तक चलती है.-यह धरती का सबसे तेजी से बढ़ने वाला पौधा है.-इसकी कुछ प्रजातियां एक दिन में 8 से 40 सेमी तक बढ़ती देखी गई हैं.