किसान पर शायरी, कोट्स और स्टेटस | by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब KISAN SHAYARI, QUOTES AND STATUS:-परिश्रम की मिशाल हैं, जिस पर कर्जो के निशान हैं,घर चलाने में खुद को मिटा दिया, और कोई नही वह किसान हैं.बढ़ रही हैं कीमते अनाज की,पर हो न सकी विदा बेटी किसान की. छत टपकती हैं उसके कच्चे मकान की,फिर भी “बारिश” हो जाये, तमन्ना हैं किसान की.हमने भी कितने पेड़ तोड़ दिए,संसद की कुर्सियों में जोड़ दिए,कुआँ बुझा दिए, नदियाँ सुखा दिए,विकास की ताकत से कुदरत को झुका दिए.किसान खुश है, बारिश खूब हुई है अबकी बरस,खेत सींच दी है पर मकान का छत तोड़ दी है,जमीन जल चुकी है लकिन आसमान अभी बाकी है,कुए सुख चुके है लेकिन उम्मीद अभी बाकि है.. !!ए बारिश.. इस बार जरूर बरस जाना,किसी का मकान गिरवी तो किसी का लगान बाकी है!एक साल में शायद कभी ना कभी आपको डॉक्टर, वकील, ARCHITECT, ENGINEER, की जरुरत पड़ सकती है, लेकिन एक किसान की जरुरत हर दिन 3 बार पड़ती है… जब आपको भूख लगता है और आप खाने को तरसते हो ..!! नंगे पैर बारिश में जब एक किसान खेतो में जाता है,तभी महकता हुआ बासमती आपके घर आता है..एक किसान शायद एक सप्ताह खाना नहीं खता ताकि हम एक महीना इत्मीनान से खा सके ..कभी सोचा है एक किसान के बगैर जिंदिगी क्या होगी..ध्यान रहे की शरीर अत्याचार तो बर्दास्त कर सकता है,लेकिन पेट की भूक नहीं ..!!– हर किसान को सम्मान देहमारा देश सिर्फ जवानो और किसानो के कारण सुरक्षित है,जरा सोचिए अगर इन् दोनों ने काम करना बंद कर दिया तो क्या होगा ??कोई परेशान है कुर्सी के लिए..कोई ख्वाहिशो के लिए..और एक किसान परेशान है,उधार के किश्तों और रोटी के लिए .. जब किसान अपने बेटे को पढ़ाता हैं,तो कई रात वो भूखा ही सो जाता हैं.जो किसान अपने बच्चों कोबड़े शहर भेजता है,वो उन की खुशियों कोदिल पर पत्थर रखकर बेचता हैं.ग़रीब के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में,तभी तो भगवान खुद बिक जाते हैं बाजारों में.क्या दिखा नही वो खून तुम्हें,जहाँ धरती पुत्र का अंत हुआ,सच को ये सच नही मान रहा,लो आँखों से अँधा भक्त हुआ.खेतों को जब पानी की जरूरत होती है,तो आसमान बरसता है या तो आँखें। कितने अजब रंग समेटे हैं, ये बेमौसम बारिश खुद में,अमीर पकौड़े खाने की सोच रहा हैं तो किसान जहर…किस लोभ से “किसान” आज भी, लेते नही विश्राम हैं,घनघोर वर्षा में भी करते निरंतर काम हैं.दीवार क्या गिरी किसान के कच्चे मकान की,नेताओ ने उसके आँगन में रस्ता बन दिया.नही हुआ हैं अभी सवेरा, पूरब की लाली पहचान,चिडियों के उठने से पहले, खाट छोड़ उठ गया किसान.मुफ़्त की कोई चीज बाजार में नहीं मिलती,किसान के मरने की सुर्खियां अखबार में नहीं मिलती। ये जो खुद को राशन की कतारों में खड़ा पाता हूँ मैं,खेतों से बिछड़ने की सजा पाता हूँ मैं.एक ईमानदार किसान को डरे सहमे हुए देखा है,मेहनत करने के बावजूद भूख से लड़ते हुए देखा है,लोग कहते हैं बेटी को मार डालोगे,तो बहू कहाँ से पाओगे?जरा सोचो किसान को मार डालोगे, तो रोटी कहाँ से लाओगे?किसान की आह जो दिल से निकाली जाएगीक्या समझते हो कि ख़ाली जाएगीकिसान खुल के हँस तो रहा हैं फ़क़ीर होते हुए,नेता मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुए. मर रहा सीमा पर जवान और खेतों में किसान,कैसे कह दूँ इस दुखी मन से कि मेरा भारत महान.ज़िन्दगी के नगमे कुछ यूँ गाता,मेहनत मजदूरी करके खाता,सद्बुद्धि सबको दो दाता,हम है, अगर हैं अन्नदाताफूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,धरती जितनी प्यासी हैं उतना तो जल दे मालिक.चीर के जमीन को, मैं उम्मीद बोता हूँ…मैं किसान हूँ, चैन से कहाँ सोता हूँ…दौर-ए-तरक्की में कोई दुःख भरी बात मत कहना,क्या फ़र्क नहीं डालता किसी पर अन्नदाता का भूखे सो जाना? किसान की समस्या खत्म नही होती,नेताओ के पास पैकेज अस्सी हैं,अंत में समस्या खत्म करने के लिए,किसान चुनता रस्सी हैं.भगवान का सौदा करता हैं,इंसान की क़ीमत क्या जाने?जो “धान” की क़ीमत दे न सक,वो “जान ” की क़ीमत क्या जाने?कोई परेशान हैं सास-बहू के रिश्तो में,किसान परेशान हैं कर्ज की किश्तों मेंये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा, सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा.मत मारो गोलियो से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ, मेरी मौत कि वजह यही हैं कि मैं पेशे से एक किसान हूँ. जिसकी आँखो के आगे,किसान पेड़ पे झूल गया, देख आईना तू भी बन्दे,कल जो किया वो भूल गया..उन घरो में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं, कद में छोटे हो, मगर लोग बड़े रहते हैं.किसान खेत में मरता है और किसान का बेटा फ़ौज में।नेता देश में ऐश करता है ,और उसका बेटा विदेश मे।आखिर कब तक???घटाएँ उठती हैं बरसात होने लगती है,जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है।।किसान के लड़के ने अपने नाम के आगे “डाक्टर” जोड़ लिया,गाँव में हल ने कोने में पड़े-पड़े दम तोड़ दिया मेरी नींद को दिक्कत ना भजन से ना अजान से हैमेरी नींद को दिक्कत पिटते हुवे जवान और खुदखुशी करते किसान से है .तापमान तो AC और कूलर वालो के लिए बढा है साहबखेत में किसान और सीमा पर जवान तो आज भी वहीं है…!कहा रख दू अपने हिस्से की शराफ़तजहाँ देखूं वहां बेईमान ही खडे हैक्या खूब बढ़ रहा है वतन देखियेखेतों में बिल्डर सड़क पे किसान खड़े है !!जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,सूखे कुएँ तुम्हारा इम्तहान बाकी है,वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,उनकी आखों में अब तक ईमान बाकी है,बादलों बरस जाना समय पर इस बार,किसी का मकान गिरवी तो किसी का लगान बाकी है।गांव से शहर घूमने आये एक किसान ने क्या खूब लिखा है,चिन्ता वहाँ भी थी चिन्ता यहाँ भी हैं, गांव में तो केवल फसले ही खराब होती थी, शहर में तो पूरी नस्ले ही खराब है ! देवताओं से भी हल नहीं हुई,जिन्दगी कही सरल नही हुई,कि अबके साल फिर यही हुआअबके साल फिर फसल नही हुई.जब कोई किसान या जवान मरता है,तो समझना पूरा हिन्दुस्तान मरता है.देर शाम खेत से किसान घर नहीं आता है,तो बच्चों का मासूम दिल सहम जाता है.कहाँ ले जाओगे किसान के हक का दाना,इस दुनिया को एक दिन तुमको भी है छोड़ जाना।ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा. एक बार आकर देख कैसा, ह्रदय विदारक मंजर हैं,पसलियों से लग गयी हैं आंते, खेत अभी भी बंजर हैं.वो जो पिछले साल सब खेतों को सोना दे गयाअब के वो तूफ़ान किस किस का मकाँ ले जाएगाशहरों में कहां मिलता है वो सुकून जो गांव में था,जो मां की गोदी और नीम पीपल की छांव में थाआप आएं तो कभी गांव की चौपालों मेंमैं रहूं या न रहूं, भूख मेजबां होगीयूं खुद की लाश अपने कांधे पर उठाये हैंऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं चीनी नहीं है घर में, लो मेहमान आ गयेमंहगाई की भट्ठी पे शराफत उबाल दोचोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करेंचूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम कोनैनों में था रास्ता, हृदय में था गांवहुई न पूरी यात्रा, छलनी हो गए पांवख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हमकोगांव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैंधान के खेतों का सब सोना किस ने चुराया कौन कहेबे-मौसम बे-फ़स्ल अभी तक इस इज़हार की धरती है सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में मगर आंगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गांव लाता है किसानों से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं, बस ऱोज नये ख्वाबों की बात करते हैंकिसानों से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं, बस ऱोज नये ख्वाबों की बात करते हैंखींच लाता है गांव में बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद,लस्सी, गुड़ के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद ऐसी ही दिलचस्प शायरी,स्टेटस,कोट्स, जोक्स और कहानियों के लिए हिन्दी Express को अभी Bookmark करे।,
किसान पर शायरी, कोट्स और स्टेटस | KISAN SHAYARI, QUOTES AND STATUS:-
परिश्रम की मिशाल हैं, जिस पर कर्जो के निशान हैं,
घर चलाने में खुद को मिटा दिया, और कोई नही वह किसान हैं.
बढ़ रही हैं कीमते अनाज की,
पर हो न सकी विदा बेटी किसान की.
छत टपकती हैं उसके कच्चे मकान की,
फिर भी “बारिश” हो जाये, तमन्ना हैं किसान की.
हमने भी कितने पेड़ तोड़ दिए,
संसद की कुर्सियों में जोड़ दिए,
कुआँ बुझा दिए, नदियाँ सुखा दिए,
विकास की ताकत से कुदरत को झुका दिए.
किसान खुश है, बारिश खूब हुई है अबकी बरस,
खेत सींच दी है पर मकान का छत तोड़ दी है,
जमीन जल चुकी है लकिन आसमान अभी बाकी है,
कुए सुख चुके है लेकिन उम्मीद अभी बाकि है.. !!
ए बारिश.. इस बार जरूर बरस जाना,
किसी का मकान गिरवी तो किसी का लगान बाकी है!
एक साल में शायद कभी ना कभी आपको डॉक्टर, वकील, ARCHITECT, ENGINEER, की जरुरत पड़ सकती है, लेकिन एक किसान की जरुरत हर दिन 3 बार पड़ती है… जब आपको भूख लगता है और आप खाने को तरसते हो ..!!
नंगे पैर बारिश में जब एक किसान खेतो में जाता है,
तभी महकता हुआ बासमती आपके घर आता है..
एक किसान शायद एक सप्ताह खाना नहीं खता ताकि हम एक महीना इत्मीनान से खा सके ..
कभी सोचा है एक किसान के बगैर जिंदिगी क्या होगी..
ध्यान रहे की शरीर अत्याचार तो बर्दास्त कर सकता है,
लेकिन पेट की भूक नहीं ..!!
– हर किसान को सम्मान दे
हमारा देश सिर्फ जवानो और किसानो के कारण सुरक्षित है,
जरा सोचिए अगर इन् दोनों ने काम करना बंद कर दिया तो क्या होगा ??
कोई परेशान है कुर्सी के लिए..
कोई ख्वाहिशो के लिए..
और एक किसान परेशान है,
उधार के किश्तों और रोटी के लिए ..
जब किसान अपने बेटे को पढ़ाता हैं,
तो कई रात वो भूखा ही सो जाता हैं.
जो किसान अपने बच्चों को
बड़े शहर भेजता है,
वो उन की खुशियों को
दिल पर पत्थर रखकर बेचता हैं.
ग़रीब के बच्चे भी खाना खा सके त्योहारों में,
तभी तो भगवान खुद बिक जाते हैं बाजारों में.
क्या दिखा नही वो खून तुम्हें,
जहाँ धरती पुत्र का अंत हुआ,
सच को ये सच नही मान रहा,
लो आँखों से अँधा भक्त हुआ.
खेतों को जब पानी की जरूरत होती है,
तो आसमान बरसता है या तो आँखें।
कितने अजब रंग समेटे हैं, ये बेमौसम बारिश खुद में,
अमीर पकौड़े खाने की सोच रहा हैं तो किसान जहर…
किस लोभ से “किसान” आज भी, लेते नही विश्राम हैं,
घनघोर वर्षा में भी करते निरंतर काम हैं.
दीवार क्या गिरी किसान के कच्चे मकान की,
नेताओ ने उसके आँगन में रस्ता बन दिया.
नही हुआ हैं अभी सवेरा, पूरब की लाली पहचान,
चिडियों के उठने से पहले, खाट छोड़ उठ गया किसान.
मुफ़्त की कोई चीज बाजार में नहीं मिलती,
किसान के मरने की सुर्खियां अखबार में नहीं मिलती।
ये जो खुद को राशन की कतारों में खड़ा पाता हूँ मैं,
खेतों से बिछड़ने की सजा पाता हूँ मैं.
एक ईमानदार किसान को डरे सहमे हुए देखा है,
मेहनत करने के बावजूद भूख से लड़ते हुए देखा है,
लोग कहते हैं बेटी को मार डालोगे,तो बहू कहाँ से पाओगे?
जरा सोचो किसान को मार डालोगे, तो रोटी कहाँ से लाओगे?
किसान की आह जो दिल से निकाली जाएगी
क्या समझते हो कि ख़ाली जाएगी
किसान खुल के हँस तो रहा हैं फ़क़ीर होते हुए,
नेता मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुए.
मर रहा सीमा पर जवान और खेतों में किसान,
कैसे कह दूँ इस दुखी मन से कि मेरा भारत महान.
ज़िन्दगी के नगमे कुछ यूँ गाता,
मेहनत मजदूरी करके खाता,
सद्बुद्धि सबको दो दाता,
हम है, अगर हैं अन्नदाता
फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
धरती जितनी प्यासी हैं उतना तो जल दे मालिक.
चीर के जमीन को, मैं उम्मीद बोता हूँ…
मैं किसान हूँ, चैन से कहाँ सोता हूँ…
दौर-ए-तरक्की में कोई दुःख भरी बात मत कहना,
क्या फ़र्क नहीं डालता किसी पर अन्नदाता का भूखे सो जाना?
किसान की समस्या खत्म नही होती,
नेताओ के पास पैकेज अस्सी हैं,
अंत में समस्या खत्म करने के लिए,
किसान चुनता रस्सी हैं.
भगवान का सौदा करता हैं,
इंसान की क़ीमत क्या जाने?
जो “धान” की क़ीमत दे न सक,
वो “जान ” की क़ीमत क्या जाने?
कोई परेशान हैं सास-बहू के रिश्तो में,
किसान परेशान हैं कर्ज की किश्तों में
ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा, सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा.
मत मारो गोलियो से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूँ, मेरी मौत कि वजह यही हैं कि मैं पेशे से एक किसान हूँ.
जिसकी आँखो के आगे,किसान पेड़ पे झूल गया,
देख आईना तू भी बन्दे,कल जो किया वो भूल गया..
उन घरो में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं,
कद में छोटे हो, मगर लोग बड़े रहते हैं.
किसान खेत में मरता है और किसान का बेटा फ़ौज में।
नेता देश में ऐश करता है ,और उसका बेटा विदेश मे।
आखिर कब तक???
घटाएँ उठती हैं बरसात होने लगती है,
जब आँख भर के फ़लक को किसान देखता है।।
किसान के लड़के ने अपने नाम के आगे “डाक्टर” जोड़ लिया,
गाँव में हल ने कोने में पड़े-पड़े दम तोड़ दिया
मेरी नींद को दिक्कत ना भजन से ना अजान से है
मेरी नींद को दिक्कत पिटते हुवे जवान और खुदखुशी करते किसान से है .
तापमान तो AC और कूलर वालो के लिए बढा है साहब
खेत में किसान और सीमा पर जवान तो आज भी वहीं है…!
कहा रख दू अपने हिस्से की शराफ़त
जहाँ देखूं वहां बेईमान ही खडे है
क्या खूब बढ़ रहा है वतन देखिये
खेतों में बिल्डर सड़क पे किसान खड़े है !!
जमीन जल चुकी है आसमान बाकी है,
सूखे कुएँ तुम्हारा इम्तहान बाकी है,
वो जो खेतों की मेढ़ों पर उदास बैठे हैं,
उनकी आखों में अब तक ईमान बाकी है,
बादलों बरस जाना समय पर इस बार,
किसी का मकान गिरवी तो किसी का लगान बाकी है।
गांव से शहर घूमने आये एक किसान ने क्या खूब लिखा है,
चिन्ता वहाँ भी थी चिन्ता यहाँ भी हैं, गांव में तो केवल फसले ही खराब होती थी, शहर में तो पूरी नस्ले ही खराब है !
देवताओं से भी हल नहीं हुई,
जिन्दगी कही सरल नही हुई,
कि अबके साल फिर यही हुआ
अबके साल फिर फसल नही हुई.
जब कोई किसान या जवान मरता है,
तो समझना पूरा हिन्दुस्तान मरता है.
देर शाम खेत से किसान घर नहीं आता है,
तो बच्चों का मासूम दिल सहम जाता है.
कहाँ ले जाओगे किसान के हक का दाना,
इस दुनिया को एक दिन तुमको भी है छोड़ जाना।
ये सिलसिला क्या यूँ ही चलता रहेगा,
सियासत अपनी चालों से कब तक किसान को छलता रहेगा.
एक बार आकर देख कैसा, ह्रदय विदारक मंजर हैं,
पसलियों से लग गयी हैं आंते, खेत अभी भी बंजर हैं.
वो जो पिछले साल सब खेतों को सोना दे गया
अब के वो तूफ़ान किस किस का मकाँ ले जाएगा
शहरों में कहां मिलता है वो सुकून जो गांव में था,
जो मां की गोदी और नीम पीपल की छांव में था
आप आएं तो कभी गांव की चौपालों में
मैं रहूं या न रहूं, भूख मेजबां होगी
यूं खुद की लाश अपने कांधे पर उठाये हैं
ऐ शहर के वाशिंदों ! हम गाँव से आये हैं
चीनी नहीं है घर में, लो मेहमान आ गये
मंहगाई की भट्ठी पे शराफत उबाल दो
चोरी न करें झूठ न बोलें तो क्या करें
चूल्हे पे क्या उसूल पकाएंगे शाम को
नैनों में था रास्ता, हृदय में था गांव
हुई न पूरी यात्रा, छलनी हो गए पांव
ख़ोल चेहरों पे चढ़ाने नहीं आते हमको
गांव के लोग हैं हम शहर में कम आते हैं
धान के खेतों का सब सोना किस ने चुराया कौन कहे
बे-मौसम बे-फ़स्ल अभी तक इस इज़हार की धरती है
सुना है उसने खरीद लिया है करोड़ों का घर शहर में
मगर आंगन दिखाने आज भी वो बच्चों को गांव लाता है
किसानों से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं, बस ऱोज नये ख्वाबों की बात करते हैं
किसानों से अब कहाँ वो मुलाकात करते हैं, बस ऱोज नये ख्वाबों की बात करते हैं
खींच लाता है गांव में बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद,
लस्सी, गुड़ के साथ बाजरे की रोटी का स्वाद
ऐसी ही दिलचस्प शायरी,स्टेटस,कोट्स, जोक्स और कहानियों के लिए हिन्दी Express को अभी Bookmark करे।
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