"सौभाग्य......सुधा आइ लाइक यू .....कया तुम मुझसे शादी करोगी.....अचानक आँफिस मे लंच टेबल पर सुधा के सामने जैसे ही मोहन मैरिज प्रपोजल रखा तो सुधा एकदम हड़बड़ा गई....फिर कुछ संभलते हुए बोली....मोहनजी.... मुझे सोचने का समय चाहिए...कहकर वापस आँफिस मे अपनी टेबल पर आ गई...... लंच के बाद से छुट्टी तक मोहन और सुधा की नजरें कयी बार मिली मगर दोनों एकदूसरे को अनदेखा करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे ......बात भले ही मोहन ने कही थी मगर दिल मे सुधा के भी एक खास जगह बना ली थी मोहन ने.... मोहन का व्यवहार सभी के लिए बातचीत मे आदर सम्मान देखकर सुधा को भी उसका साथ अच्छा लगता था..... मगर..... वो एक अंतरमन से लड रही थी जो उसे आगे बढने से रोका रहा था.....छुट्टी के वक्त मोहन ने सुधा को रोककर कहा - देखो सुधा .....मैंने अपने मन की बात आपसे कही जो शायद कोमल के जाने के बाद कभी किसी से कहूंगा सोचा भी नही था .....तुम्हारे साथ जो वक्त मिलता है बातचीत का साथ आँफिशियल काम का ....पता नहीं कयो ऐसा लगता है मे तुम्हारे साथ कंन्फिटेबल हूं ....मगर फिर भी अगर आपको कुछ भी गलत लगा हो तो माफी चाहता हूं पर नाराज नही होना आपका जो भी फैसला होगा मुझे स्वीकार होगा ....कहकर मोहन दूसरी दिशा की ओर बढ गया.... सुधा बस पकडकर जल्दी घर आ गयी ....दरअसल उसके सहकर्मी मोहन की पत्नी कोमल पिछले साल एक बच्ची को जन्म देते समय परलोक सिधार गयी और इधर सुधा भी अपने बूढ़े सास ससुर के साथ अकेली ही रहती थी उसके पति का भी बीते दो साल पहले बाइक एक्सीडेंट में निधन हो गया था ......सास ससुर के बहुत चाहने पर भी वो उन्हें इस तरह अकेले छोड़कर दूसरी शादी के लिए राजी नही हुई थी... पर आज जब लंच के समय मोहन ने अपनी तरफ से उसे शादी के लिए कहा " कि तुम भी अकेली हो और में भी अपनी बच्ची को अकेले सम्भाल नही पा रहा तो क्यों ना हम मिलकर एक नया जीवन शुरू करे.........तो इस बात ने उसे झकझोर दिया था बहुत विचार किया उसने.... वो जानती थी की उसके सास ससुर भी यही चाहते है कि उसका घर एक बार फिर से बस जाए.... मन मे एक फैसला लेकर वो रात को सो गई....अगले दिन आँफिस मे मोहन की नजरें उससे मिली...सुधा जानती थी वो उसके जवाब का इंतजार कर रही थी...सुधा ने मोहन से कहा जबाब जानने के लिए वो शाम को घर चले.... अपने घरवालो के सामने ही वो मोहन को जवाब देगी.....शाम को मोहन जब सुधा के साथ घर पहुंचा तो सुधा ने अपने ससुर जी को कहा ...पापा जी ....मम्मी जी ये मोहनजी है मेरे आफिस में मेरे साथ काम करते है इनकी पत्नी नही रही और इनकी एक बच्ची है.... ये मुझसे शादी करना चाहते है.....ससुर जी एकदम से बोले ....अरे बेटा इससे खुशी की और क्या बात होगी हमारे जीते जी तुम्हारा घर बस जाए हम तो आज है कल नही...हम तो यही कबसे चाहते थे ...नही पिता जी .....मैं आपके सामने मोहन से शादी के लिए तभी हां करूँगी अगर शादी के बाद आप भी हमारे साथ ही रहेंगे हम दोनों मिलजुलकर अपनी अपनी जिम्मेदारियां निभाएंगे ....आप दोनों को इस बुढ़ापे में मैं अकेला नही छोड़ सकती.....और दूसरी बात मोहनजी आप की बेटी ही हमारी एकमात्र औलाद होगी .....दूसरा बच्चा हो और मैं कल को कोई भेदभाव करूं ये मुझसे नही होगा .....अब जबाब आपको देना है मोहनजी....की क्या अब भी आप मुझे अपनाना चाहते है......यदि हां तो मे आपसे शादी के लिए पूर्णतया तैयार हूं अन्यथा ....मोहन मुस्कुराते हुए सुधा को देखकर बोला... सुधा मैं कितना खुशकिस्मत हूं जो इतनी समझदार जीवनसंगिनी मिल रही है .....आपके इस फैसले का तहेदिल से सम्मान सहित मुझे स्वीकार्य है ऐसा करने से मुझे भी माता पिता की छत्रछाया मिल जाएगी ....मोहन ने तुरंत झुक कर सास ससुर जी के पैर छुए और सुधा का हाथ थाम कर बोला.....मे धन्यवाद कह कर तुम्हारे जज्बातों का अनादर नही करूँगा मैंने तुम्हें चुनकर कोई गलती नही की .....तभी सासु मां प्लेट में गुड़ रखकर ले आई और प्यार से सुधा को गले लगाकर बोली.. ..पगली ...चलो अब सब का मुंह मीठा करवाओ पहले से बता देती तो मिठाई मंगवा लेते...ससुर जी ने प्यार से बहु से बेटी बनी सुधा के और बेटे बने मोहन के सिर हाथ फेरा.....मेरी बच्चो सदा सुखी रहो....तुम्हारे कारण आज हम दुबारा एक बेटे बेटी के माता पिता बनने का सौभाग्य पा रहे है....." दोस्तो जिन्दगी तब बहुत आसान हो जाती है, जब परखने वाला नही, बल्कि समझने वाला साथी मिल जाता है.."एक सुन्दर रचना... By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब..🙏🙏🙏,

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